इस दौर का हाल कुछ यूँ कहा जा सकता है, आलम-ए-तन्हाई कब तक सहा जा सकता है ! बत्ती को लौ के समीप लाकर पूछते हो जलने से कैसे बचा जा सकता है !! 🌹
हमें भूलने वाले काफिर, हम नहीं तुम्हें याद करते हैं... जाओ आज तुम्हें इश्क की बंदिशों से आजाद करते हैं ।🌹
आज चांद से पूछा- हर रात क्यों आता है? बड़ा खूबसूरत जवाब था उसका भी उस गम से बचाता हूँ, जो हर रात तुझे घेरने आता है !!💞
ठिटोलियों को छोड़ो तुम रुखसत में आना.. रोते थे हम तो हंसता था जमाना, रुकना है तो स्वागत है तुम्हारे हर किरदार का, सुनो अब मुझे और न आजमाना !!🌹
हमें भूलने वाले काफिर, हम नहीं तुम्हें याद करते हैं... जाओ आज तुम्हें इश्क की बंदिशों से आजाद करते हैं ।🌹
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